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ब्रीफ टेल्स–नाव

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वह लगभग दस साल बाद अपने ननिहाल आया था। सब कुछ पूरी तरह से बदल चुका था। जहां पर पहले ईंट बिछी हुई थी वहां पर पत्थर बिछ चुके थे। वह बाजार घूमने चला गया। वह घर से बाहर निकला ही था कि पूरे आसमान में ना जाने कहां से बादल आ गए। अगले ही पल बारिश होने लगी। मानसून में इस तरह से बारिश का आना आम बात थी। वह वापिस लौट आया।

“चाय और पकौड़ी खा ले।” उसके मामा ने उसे देखते ही कहा।

पकौड़ी खाते हुए उसकी नजर सामने वाले घर में बैठे बच्चों के ऊपर पड़ी। सभी फोन में पूरी तरह से खोएं हुए थे। उन्हें देखकर वह अपनी पुरानी यादों में खो गया। उस वक्त घर के सामने के हिस्सा थोड़ा नीचा था जिसकी वजह से वहां पानी भर जाया करता था। अक्सर दोनों भाई बहन मानसून के वक्त आते तो उस पानी में खूब मस्ती करते। इसके लिए पहले ही खूब सारी नाव बनाकर रख लेते थे और बाद में एक एक करके सारी नाव पानी में बहा देते थे। उस वक्त उन्हें जो खुशी मिलती थी उसकी बराबरी किसी चीज से भी नही की जा सकती थी।

“वे भी क्या दिन है। बच्चे कितनी मासूमियत के साथ बारिश और नाव का मजा लेते थे।” उसने खुद से कहा और कुछ सोचते हुए थोड़ा जोर से बोला। “चलो नाव बनाकर बारिश में खेलते है।”

“मम्मी ने मना किया है। हम बीमार पड़ जाएंगे।” बच्चों ने जवाब दिया और दोबारा फिर फोन में लग गए।

“आज कल के मां बाप बीमारी से बचाने के लिए जो काम कर रहे है उल्टा उनसे बच्चे बीमार पड़ जाते हैं। ऐसे में तो ये छुई मुई बन कर रह जायेंगे।” उसने खुद से कहा और अंदर चला गया।

जब वह वापिस आया तो उसके हाथ में एक नाव थी। उसने उसे पानी में छोड़ दिया और फिर अपनी जगह पर बैठ गया। वह उस नाव को बड़े ध्यान से देखने लगा। “अपने अंदर के बचपने को कभी नही मारना चाहिए।” आज बारिश और नाव ने उसकी पुरानी यादें ताजा कर दी थी।

“वो कागज की कश्ती वो बारिश का पानी..!” वह इन पक्तियों को गुनगुनाने लगा।

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